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Atul Kanakk

@atulkanakk

writer with prestigious Sahitya Academy award, ten books and thousands of published articles and poems along with satires on different walks of life

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calendar_today19-08-2010 07:48:43

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दूसरों को बेइज्ज़त करने की कोशिश में लोग अक्सर अपनी ही इज्ज़त गँवाते हैं।

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कड़ी धूप में कभी तपूँ तो - देने छाँव चले आना
याद सताने लगी उम्र को, उल्टे पाँव चले आना

रास, आस,हर श्वांस, प्यास -सब,तुमसे अच्छे लगते हैं
हे मनमोहन!, फिर मेरे सपनों के गाँव चले आना
- अतुल कनक
PC-Google

कड़ी धूप में कभी तपूँ तो - देने छाँव चले आना याद सताने लगी उम्र को, उल्टे पाँव चले आना रास, आस,हर श्वांस, प्यास -सब,तुमसे अच्छे लगते हैं हे मनमोहन!, फिर मेरे सपनों के गाँव चले आना - अतुल कनक PC-Google
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रिश्तों का चंदन फलने लगता है तो जहरीले साँप जड़ों तक आ ही जाते हैं।

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दर्द अभी कम है कि इन आँखों में आँसू कायम है
अभी हमारे लब पे कुछ गीतों का जादू कायम है

चला गया तू लेकिन धड़कन तुझसे ही बतियाती है/
चला गया तू, पर- आलम में तेरी खुशबू कायम है
- अतुल कनक

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पेड़ रहेंगे तो ही रहेगा पृथ्वी पर जीवन
आज राजस्थान पत्रिका के सभी संस्करणों में मेरा लेख
आप गुणीजन की नज़र

पेड़ रहेंगे तो ही रहेगा पृथ्वी पर जीवन आज राजस्थान पत्रिका के सभी संस्करणों में मेरा लेख आप गुणीजन की नज़र #पेड #पर्यावरण #पृथ्वी
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जब अपने ही जलाने पर तुले हों तो धूप की तल्खियों से क्या ग़िला करें?

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लोगों की गरेबान में इतनी गंदगी है कि वो खुद को देखने के बजाए इधर उधर ताकाझांकी करने को ही परमज्ञान मान लेते हैं।

तर्क साहित्य

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युगकवि डॉ. कुमार विश्वास गुरुजी के प्रशंसकों के परिवार 'विश्वासम्' की डिजिटल पत्रिका का जून माह के अंक 'कर्मयोग विशेषांक' का लोकार्पण 1 जून को सायं 6:30 बजे ऑनलाइन किया जाएगा। आप सभी की प्रतीक्षा रहेगी।🙏🙏
विश्वासम् ❤️
Atul Kanakk sir 🙏

युगकवि डॉ. कुमार विश्वास गुरुजी के प्रशंसकों के परिवार 'विश्वासम्' की डिजिटल पत्रिका #मनहर का जून माह के अंक 'कर्मयोग विशेषांक' का लोकार्पण 1 जून को सायं 6:30 बजे ऑनलाइन किया जाएगा। आप सभी की प्रतीक्षा रहेगी।🙏🙏 @Vishwaasam ❤️ @atulkanakk sir 🙏
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चाँद बदली में छुप गया था क्या/
चाह ने फिर तुम्हें छुआ था क्या/

ख़्वाब में मैंने तुमको चूमा था
रात तुमको भी कुछ हुआ था क्या।।
@अतुल कनक

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आँसू,आग,जलन- चाह की तह में क्या-क्या निकला
जिसको हमने क़िस्मत समझा, बड़ा हादसा निकला

दुनिया की क्या बात करें, जिसको अपना माना था
जिसके खातिर हर सुख छोड़ा, वही बेवफ़ा निकला
- अतुल कनक

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सुख के सपनों सावधान!, अब मंथराओं के हाथ में मोबाइल फोन भी हैं।

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जिनको सीधा-सादा समझा,वो ही पापी निकले
पुण्यों का हरकारा समझा, वो ही पापी निकले
जब बाज़ार लगा तो वो - ईमान बेचकर आए/
हमने जिन्हें देवता समझा, वो ही पापी निकले
- अतुल कनक

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अहसासों के अनुमोदन ने मन जादूगर बना दिया
प्यार भरे इक संबोधन ने सब कुछ सुखकर बना दिया

अपने दिल को कहाँ फिक्र थी किसी और के सपनों की
वो तो कोई सम्मोहन था, जिसने शायर बना दिया
-अतुल कनक

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धूप आँखें दिखाती हो जब,
लू बदन को जलाती हो जब,
कोई आवाज़ आती हो जब /कि अभी तो सज़ा और है
चल मंज़िल के खातिर निकल, इस सफर का मज़ा और है
- अतुल कनक

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सुबह सुबह इक चाहत ने मौसम की बाँह मरोड़ी
बहुत बरस बीते- आ हम शैतानी कर लें थोड़ी
हँस कर बोला मौसम- मन तो मेरा भी होता है
लेकिन साथ नहीं देती है - अब ये उम्र निगोड़ी
-अतुल कनक

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चंदनवन सी महकूँ - तेरी छुअन मुझे मिल जाए तो
पाप- पुण्य सब बिसरा दूँगी, तू जो साथ निभाए तो
अपने अधरों की बंसी को कहना - राधा कहती है/
जन्मों तक यों ही नाचूँगी - कान्हा मुझे नचाए तो
- अतुल कनक
-Google

चंदनवन सी महकूँ - तेरी छुअन मुझे मिल जाए तो पाप- पुण्य सब बिसरा दूँगी, तू जो साथ निभाए तो अपने अधरों की बंसी को कहना - राधा कहती है/ जन्मों तक यों ही नाचूँगी - कान्हा मुझे नचाए तो - अतुल कनक #PC-Google
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आस्था सार्थकता का सर्वोत्तम अलंकरण है जो अपने अस्तित्व में श्रेष्ठता के सब सोपान सँजो लेती है।
कैसे?
सुनिए Dr Kumar Vishvas से

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मनुहारों से मन ऊबा तो मुँह मरोड़कर चली गई
प्रेम - व्रेम के सारे वादे, यहीं तोड़कर चली गई

किसी और का साथ मिला तो, एक नदी भटकी ऐसे
एक घाट दीवाना था- वो, उसे छोड़कर चली गई
- अतुल कनक

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हाथ पकड़ बादल का बोली सुबह हवा- राधे!राधे!!
सिंदूरी किरणों ने नभ पर आज लिखा-राधे!राधे!!

मनुहारों के वृंदावन में रास रचाया सपनों ने /
हौले से छूकर जब तुमने हमें, कहा - राधे! राधे!!
- अतुल कनक

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